मानवाधिकार (Human Rights) क्या है ?मानवाधिकार का विकास , मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा, अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों की मुख्य संस्थाएँ,भारत में मानवाधिकार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)

मानवाधिकार (Human Rights)


मानवाधिकार (Human Rights) वे अधिकार हैं जो हर व्यक्ति को  मानव होने के कारण प्राप्त होते हैं ,ये अधिकार किसी सरकार या समाज द्वारा दिए नहीं जाते, बल्कि स्वत: ही जन्मजात प्राप्त होते हैं । ये व्यक्ति की गरिमा, स्वतंत्रता, समानता और न्याय सुनिश्चित करते हैं , तथा कानून द्वारा संरक्षित होते हैं। मानवाधिकार नैतिकता पर आधारित होते हैं न कि नागरिकता पर । ये अधिकार जाति, धर्म, लिंग, राष्ट्रीयता या सामाजिक स्थिति से प्रभावित नहीं होते है।


👉हिटलर द्वारा यहूदी जनसंख्या के विरुद्ध किए गए अत्याचारों के बाद मानवाधिकारों की अवधारणा को विशेष महत्व प्राप्त हुआ। यह अवधारणा राज्य की संप्रभुता की धारणा को चुनौती देती है और यह सुझाव देती है कि यदि कोई राज्य अपने नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय उन अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी ले सकता है। इस प्रकार से संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर 1948 को सार्वभौम मानवाधिकार घोषित किया गया ।इस दिन को हर वर्ष "अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस" के रूप में मनाया जाता है।

सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा को विभिन्न समूहों में विभाजित किया जा सकता है, जिनमें शामिल हैं — सुरक्षा का अधिकार, राजनीतिक अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, न्यायिक प्रक्रिया (Due Process) और सामाजिक कल्याण अधिकार। 


मानवाधिकार का विकास 


मानवाधिकारों की धारणा बहुत पुरानी है, लेकिन इसे आधुनिक रूप 17वीं–20वीं सदी में मिला।


1. प्राचीन काल में मानवाधिकार


 प्राचीन सभ्यताओं में ही मानव गरिमा, समानता और न्याय के विचार मिलते हैं।

जैसे  भारत में वैदिक काल में “सर्वे भवन्तु सुखिनः” और “अहिंसा परमो धर्मः” जैसे सिद्धांतों ने मानवकल्याण और समानता का संदेश दिया। बौद्ध धर्म ने करुणा, अहिंसा, और सभी के प्रति सम्मान का विचार दिया। अशोक के शिलालेखों में मानवता, दया और धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांत लिखे गए हैं।  चीन में  कन्फ्यूशियस ने न्याय, नैतिकता और आपसी सम्मान पर बल दिया। यूनान में  सॉक्रेटीज, प्लेटो और अरस्तू ने “न्याय”, “समानता” और “राज्य की जिम्मेदारी” पर विचार प्रस्तुत किए।


 2. मध्यकालीन विचार और धार्मिक योगदान


ईसाई धर्म के अनुसार सभी मनुष्य ईश्वर की संतान हैं — यह विचार समानता और दया की भावना को प्रोत्साहित करता है।  इसी प्रकार कुरान में कहा गया है कि सभी मनुष्य एक समान हैं और किसी को किसी पर जाति, रंग या भाषा के आधार पर श्रेष्ठता नहीं है। सिख धर्म के गुरु  गुरु नानक देव जी ने “सभी मनुष्यों में एक ही ज्योति है” कहकर समानता और मानवता का संदेश दिया।

मध्यकालीन युग में मानवाधिकारों की अवधारणा आज जैसी व्यापक नहीं थी, परंतु इस काल में राजा की शक्ति पर नियंत्रण,न्यायिक प्रक्रिया की शुरुआत, धार्मिक और सामाजिक समानता की बातें,  इन सबने आधुनिक मानवाधिकार विचारों (जैसे संयुक्त राष्ट्र का Universal Declaration of Human Rights – 1948) के लिए रास्ता तैयार किया।


 3. आधुनिक मानवाधिकार  


आधुनिक मानवाधिकार का मुख्य विकास  17वीं–20वीं सदी में हुआ। इसे तीन पीढ़ियों में बांटा गया है।

 इन पीढ़ियों का वर्गीकरण सबसे पहले 1979 में Karel Vasak (कारेल वासक) नामक एक फ्रांसीसी विधिवेत्ता (jurist) ने किया था। उन्होंने यह वर्गीकरण फ्रांसीसी क्रांति के तीन नारे  स्वतंत्रता (Liberty), समानता (Equality), और भ्रातृत्व (Fraternity)  के आधार पर किया।


पहली पीढ़ी के मानवाधिकार 

(नागरिक और राजनीतिक अधिकार (Civil and Political Rights)  


इन अधिकारों की उत्पत्ति 17 वीं एवं 18 वीं सदी में उदारवादी क्रांतियों के फलस्वरूप हुई ।इन उदारवादी क्रांतियों में मुख्यता निम्न शामिल थी ।

(1689) इंग्लैंड की क्रांति 

(1776) अमेरिकी क्रांति

 (1789) फ्रांसीसी क्रांति

इन क्रांतियों से  जीवन का अधिकार (Right to Life)

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression)धर्म की स्वतंत्रता (Freedom of Religion)सभा और संगठन की स्वतंत्रता (Freedom of Assembly and Association) निष्पक्ष न्याय का अधिकार (Right to Fair Trial) मताधिकार (Right to Vote)यातना और दासता से मुक्ति (Freedom from Torture and Slavery)  आदि प्रमुख अधिकार प्राप्त हुए ।

🔹 ये अधिकार “नकारात्मक अधिकार” (Negative Rights) माने जाते हैं , यानी राज्य को “कुछ न करने” के लिए बाध्य करते हैं (जैसे कि राज्य नागरिक की स्वतंत्रता में अनावश्यक हस्तक्षेप न करे)।

इन अधिकारों का ज़िक्र संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार घोषणा (UDHR, 1948) के अनुच्छेद 3–21 में मिलता है।


 दूसरी पीढ़ी के मानवाधिकार 

आर्थिक और सामाजिक अधिकार (Economic and Social )


19वीं एवं 20वीं सदी में समाज में आर्थिक व सामाजिक समानता लाने और सभी को न्यूनतम जीवन स्तर प्राप्त करने के उद्देश्य से इन अधिकारों की उत्पत्ति हुई । इसके तहत निम्नलिखित अधिकार सम्मिलित किए गए ।

🔹काम करने का अधिकार (Right to Work)

🔹उचित मजदूरी और सुरक्षित कार्य परिस्थितियाँ (Right to Just and Favorable Conditions of Work)

🔹शिक्षा का अधिकार (Right to Education)

🔹स्वास्थ्य का अधिकार (Right to Health)

🔹भोजन, वस्त्र और आवास का अधिकार (Right to Food, Clothing, and Housing)

🔹सामाजिक सुरक्षा का अधिकार (Right to Social Security)

🔹सांस्कृतिक जीवन में भागीदारी का अधिकार (Right to Participate in Cultural Life)


ये “सकारात्मक अधिकार” (Positive Rights) हैं — यानी राज्य को “कुछ करने” के लिए बाध्य करते हैं (जैसे कि शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करना)।

इन अधिकारों का उल्लेख International Covenant on Economic, Social and Cultural Rights (ICESCR, 1966) में किया गया है।


तीसरी पीढ़ी के मानवाधिकार

(सांस्कृतिक,सामूहिक एवं पर्यावरणीय अधिकार )

(Cultural, collective and environmental)


इन अधिकारों का उद्देश्य पूरे मानव समुदाय और राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना  है ताकि सभी को वैश्विक न्याय और शांति मिल सके। इसके तहत निम्न अधिकार प्राप्त होते हैं। 

🔹विकास का अधिकार (Right to Development)

🔹पर्यावरण का अधिकार (Right to a Healthy Environment)

🔹शांति का अधिकार (Right to Peace)

🔹आत्मनिर्णय का अधिकार (Right to Self-Determination)

🔹मानवीय सहायता का अधिकार (Right to Humanitarian Assistance)


ये सामूहिक अधिकार (Collective Rights) हैं, जो व्यक्तियों के बजाय समूहों, समुदायों या पूरे मानव समाज से जुड़े हैं। इन अधिकारों का आधार अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सतत विकास पर टिका है। 


मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration of Human Rights - UDHR)


द्वितीय विभाग युद्ध (1939-1945) में हुए अमानवीय व्यवहारों एवं मानव पर हुए अत्याचारों के कारण सन 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations)की स्थापना इसीलिए की गई ताकि मानवाधिकारों की रक्षा हो सके । 

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर 1948 को मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा(UDHR) की  ,इसका मुख्य उद्देश्य — अंतरराष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और मानवाधिकारों की रक्षा है । इसमें  30 अनुच्छेद हैं। जो प्रत्येक व्यक्ति के मूल अधिकारों और स्वतंत्रता की घोषणा करते हैं। यह संपूर्ण विश्व में मानवाधिकारों की आधारशिला है ।

👉मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा(UDHR)

मे लिखित अधिकार निम्नवत हैं।

🔹जीवन, स्वतंत्रता और सुरक्षा का अधिकार

🔹दासता और अत्याचार से मुक्ति

🔹विचार, अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता

🔹अभिव्यक्ति, संगठन और सभा की स्वतंत्रता

🔹न्यायपूर्ण मुकदमे का अधिकार

🔹शिक्षा, काम और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार



अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों की मुख्य संस्थाएँ


1. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UN Human Rights Council - UNHRC) - इसकी स्थापना सन 2006 में की गई, इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है , इसका मुख्य कार्य दुनिया भर में मानवाधिकारों की निगरानी करना उनकी रिपोर्ट तैयार करना तथा सिफारिशें देना है ।


2. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (Office of the High Commissioner for Human Rights - OHCHR)- इसकी स्थापना सन 1993 में विश्व मानवाधिकार सम्मेलन को सिफारिश पर की गई । इसका मुख्यालय जेनेवा स्विट्जरलैंड में है,इसका कार्य देशों में मानवाधिकारों के पालन की देखरेख, तकनीकी सहायता और जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करना है ।


3. अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court - ICC)- यह एक अंतरराष्ट्रीय न्यायालय है इसकी स्थापना सन 2002 में हुई ,इसका मुख्यालय द हेग , नीदरलैंड में है । इसका मुख्य  कार्य नरसंहार, युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए (जिनके खिलाफ राष्ट्रीय न्यायालय कार्रवाई नहीं कर पाते) जिम्मेदार व्यक्तियों पर मुकदमा चलाना है ।


4. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice - ICJ)

इसकी स्थापना सन 1945 (कार्य 1946) में हुई ।इसका मुख्यालय हेग नीदरलैंड में है ।इसका  कार्य देशों के बीच मानवाधिकार विवादों का निपटारा करना है यह व्यक्तियों या संगठनों की सुनवाई नहीं करता ।


🇮🇳 भारत में मानवाधिकार


भारत में संविधान (1950) ने भी मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) के रूप में मानवाधिकारों को कानूनी रूप से मान्यता दी। भारतीय संविधान के भाग III में अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights)का वर्णन है।  

मौलिक अधिकार 

🔹 समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14- 18 )

(विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें )

https://polsciencenet.blogspot.com/2025/09/equality-right-to-equality-14-18.html

🔹 स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)

(विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें )

https://polsciencenet.blogspot.com/2025/09/blog-post_19.html


🔹 शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)

🔹 धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25- 28)

🔹 सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29- 30)

🔹 संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32)


👉डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को “संविधान की आत्मा” कहा था।


राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) 

(मानवाधिकार संरक्षण अधिनयम, 1993)


 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग  देश में मानवाधिकार की रक्षा के लिए निर्मित एक स्वतंत्र संस्था है,जिसका कार्य मानवाधिकार उल्लंघन की जांच करना , सरकार को सिफारिशें देना ,जेलों का निरीक्षण करना, मानवाधिकार की जागरूकता फैलाना एवं अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों की समीक्षा करना है ।इसकी स्थापना 12 अक्टूबर 1993 को हुई थी जिसमें सन 2006 और 2019 में संशोधन भी हुए हैं  ।इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है ।

👉 राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में एक अध्यक्ष (भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश), चार सदस्य ( मानवाधिकार, कानून, सामाजिक कार्य, प्रशासन आदि के विशेषज्ञ) होते हैं। कम से कम एक महिला सदस्य का  होना अनिवार्य है (संशोधन 2019)। 

👉 सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है । 

👉 अध्यक्ष एवं सदस्य का कार्यकाल 3 वर्ष या 70 साल (जो पहले हो ) । पुनर्नियुक संभव है (संशोधन 2019)।



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