स्वतंत्रता :
स्वतंत्रता का अर्थ है बाहरी प्रतिबंधों, बंधनों या बाधाओं से मुक्ति। यह अपनी इच्छा के अनुसार सोचने, कार्य करने और अपना विकास करने की शक्ति है, लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि हम अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग दूसरों के अधिकारों का हनन किए बिना करें।
स्वतंत्रता के प्रकार :
स्वतंत्रता के कई प्रकार होते हैं, जिनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
राजनीतिक स्वतंत्रता: किसी देश या राज्य की किसी बाहरी शक्ति या हस्तक्षेप से मुक्ति। इसमें अपनी सरकार का चुनाव करने और स्वयं के कानून बनाने का अधिकार शामिल होता है।
नागरिक स्वतंत्रता: यह व्यक्तियों को उत्पीड़न या अनुचित व्यवहार से बचाती है और उनके लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अधिकार प्रदान करती है। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19 के तहत कई नागरिक स्वतंत्रताएं दी गई हैं, जैसे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता: किसी बाहरी व्यक्ति या संगठन के नियंत्रण से मुक्ति। इसमें अपनी पसंद के अनुसार कार्य करने, अपनी इच्छाओं को पूरा करने और अपने विचारों को व्यक्त करने का अधिकार शामिल है।
आर्थिक स्वतंत्रता: यह आर्थिक निर्णयों को स्वतंत्र रूप से लेने और अपनी संपत्ति का उपभोग करने की स्वतंत्रता है।
सामाजिक स्वतंत्रता: समाज में बिना किसी भेदभाव या बाधा के रहने, विचार व्यक्त करने और अपनी पसंद के लोगों के साथ जुड़ने की स्वतंत्रता।
राष्ट्रीय स्वतंत्रता: एक राष्ट्र को किसी अन्य राष्ट्र के नियंत्रण या प्रभुत्व से मुक्ति।
नैसर्गिक (प्राकृतिक) स्वतंत्रता: बिना किसी मानवीय कानून या सामाजिक प्रतिबंधों के व्यक्ति के स्वाभाविक अधिकारों और स्वतंत्रता को नैसर्गिक स्वतंत्रता कहा जाता है।
कुछ दार्शनिकों के विचार:
इसायाह बर्लिन:
इन्होंने स्वतंत्रता की दो मुख्य अवधारणाओं - नकारात्मक और सकारात्मक स्वतंत्रता - को प्रस्तुत किया और उनके बीच एक उपयोगी अंतर बताया।
नकारात्मक स्वतंत्रता: बाहरी बाधाओं का अभाव, यानी जहाँ किसी व्यक्ति पर कोई बंधन न हो।
सकारात्मक स्वतंत्रता: अपने आत्म-नियंत्रण और आत्म-विकास के लिए आवश्यक शक्तियों का होना l
जॉन स्टुअर्ट मिल:
इन्होंने शास्त्रीय उदारवादी आदर्शों का समर्थन किया, विशेष रूप से निरंकुश राज्य सत्ता के विरुद्ध व्यक्तियों की स्वतंत्रता, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ज़ोर दिया।
> वर्ष 1859 में प्रकाशित जॉन स्टुअर्ट मिल की पुस्तक ऑन लिबर्टी (On Liberty), अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में लिखी गई। यह अब तक की सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है ।
स्वतंत्रता पर भारतीय दार्शनिकों के विचार :
1. आदि शंकराचार्य (अद्वैत वेदांत)
उनके अनुसार सच्ची स्वतंत्रता आत्मा की अनुभूति से मिलती है।
जब जीव आत्मा और परमात्मा के अद्वैत को जान लेता है, तब मोह, बंधन और दुःख से मुक्त होकर पूर्ण स्वतंत्रता का अनुभव करता है।
बाहरी स्वतंत्रता क्षणिक है, परंतु आत्मिक मुक्ति ही वास्तविक स्वतंत्रता है।
2. महात्मा बुद्ध
बुद्ध ने स्वतंत्रता को निर्वाण के रूप में समझाया।
जब मनुष्य तृष्णा (लालसा) और अविद्या (अज्ञान) से मुक्त होता है, तभी उसे सच्चा स्वातंत्र्य प्राप्त होता है।
उनके अनुसार स्वतंत्रता का मार्ग अष्टांगिक मार्ग (सम्यक दृष्टि, सम्यक आचरण आदि) से होकर जाता है।
3. स्वामी विवेकानंद
उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता को समाजसेवा और राष्ट्रनिर्माण से जोड़ा।
विवेकानंद के अनुसार केवल राजनीतिक स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं है; आत्मनिर्भरता, आत्मशक्ति और आत्मज्ञान से ही वास्तविक स्वतंत्रता आती है।
वे कहते थे— "स्वतंत्रता का अर्थ है आत्मा को पहचानना और उसे व्यक्त करने का साहस करना।"
4. महात्मा गांधी
गांधीजी ने स्वतंत्रता को सत्य और अहिंसा से जोड़ा।
उनके लिए राजनीतिक स्वराज तभी सार्थक है जब प्रत्येक व्यक्ति को आत्म-नियंत्रण (self-rule) और नैतिक स्वतंत्रता प्राप्त हो।
गांधीजी का स्वराज केवल अंग्रेज़ों से मुक्ति नहीं, बल्कि स्वयं पर नियंत्रण और ग्राम-स्वराज की स्थापना था।
5. अरविन्द घोष (श्री अरविन्द)
उन्होंने स्वतंत्रता को राष्ट्र की आध्यात्मिक नियति से जोड़ा।
उनके अनुसार भारत का स्वाधीन होना केवल राजनीतिक घटना नहीं बल्कि मानवता के आध्यात्मिक उत्थान का एक साधन है।
उन्होंने "पूर्ण स्वतंत्रता" को न केवल राष्ट्र की मुक्ति बल्कि आत्मा की मुक्ति से जोड़ा।
6. डॉ. भीमराव अंबेडकर
अंबेडकर के लिए स्वतंत्रता का अर्थ था— सामाजिक न्याय और समानता।
उन्होंने कहा कि यदि समाज जाति, ऊँच-नीच और भेदभाव से मुक्त नहीं होता, तो राजनीतिक स्वतंत्रता अधूरी है।
उनके लिए स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ था— प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार और अवसर मिलना।
स्वतंत्रता का अधिकार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 तक मौलिक अधिकारों का हिस्सा हैं और नागरिकों को स्वतंत्रता व सुरक्षा प्रदान करते हैं।
अनुच्छेद 19 – स्वतंत्रता के अधिकार
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत नागरिकों को निम्नलिखित स्वतंत्रताएँ प्राप्त हैं:
1.भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ।
2.शांतिपूर्ण ढंग से इकट्ठा होने एवं सभा करने की स्वतंत्रता।
3.संघ या समुदाय बनाने की स्वतंत्रता ।
4.भारत के राज्यक्षेत्र में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता ।
5.भारत के किसी भी क्षेत्र में रहने की स्वतंत्रता ।
6.किसी भी व्यवसाय या पेशा अपनाने की स्वतंत्रता ।
👉 लेकिन इन स्वतंत्रताओं पर समाज की सुरक्षा, शांति, नैतिकता और राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए यथोचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
अनुच्छेद 20 – अपराधों के लिए संरक्षण
यह अनुच्छेद अपराध और दंड से संबंधित संवैधानिक सुरक्षा देता है:
पूर्वव्यापी दंड (Ex-post facto law) – किसी अपराध के लिए वह कानून लागू नहीं होगा जो अपराध करने के बाद बनाया गया हो।
द्वितीय दंड (Double jeopardy) – किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दोबारा सजा नहीं दी जा सकती।
स्वयं के विरुद्ध साक्ष्य देने से छूट (Self-incrimination) – किसी अपराध के आरोपी को अपने ही खिलाफ गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण
“किसी भी व्यक्ति को उसकी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है।”
➡️ इसका मतलब है:
किसी की जान या स्वतंत्रता केवल कानूनन प्रक्रिया से ही छीनी जा सकती है।
इसमें सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार (अनु. 21A), स्वास्थ्य का अधिकार, स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार आदि भी न्यायपालिका ने शामिल किया है।
👉 यह अनुच्छेद बहुत व्यापक है और समय के साथ इसमें अनेक अधिकार समाहित किए गए हैं।
अनुच्छेद 22 – गिरफ्तारी और निरोध से संबंधित संरक्षण
👉गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी का कारण बताना अनिवार्य।
👉उसे वकील से परामर्श और बचाव करने का अधिकार।
👉24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना आवश्यक।
मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना 24 घंटे से अधिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता।
निवारक निरोध (Preventive Detention) की व्यवस्था:
तीन महीने तक: किसी व्यक्ति को बिना किसी सलाहकार बोर्ड की राय के अधिकतम तीन महीने तक नजरबंद किया जा सकता है।
तीन महीने से अधिक: यदि सलाहकार बोर्ड यह सिफारिश करता है कि व्यक्ति को अधिक समय तक हिरासत में रखा जाना चाहिए, तो निवारक नजरबंदी की अवधि तीन महीने से अधिक बढ़ाई जा सकती है।
0 टिप्पणियाँ